Friday, February 19, 2021

ज़िंदगी उन्हीं पलों में है..

 ज़िंदगी उन्हीं पलों में है जिन्हें हो जिया हमने

ख़ुदा भी आख़िर में पूछेगा क्या किया हमने

आंसू भी मोती हैं और काँटे भी लगते हैं फूल 

देखना ये है किसको किस तरह लिया हमने 

चेहरा यूँ मुस्कुराता मिला कि पता न चला 

कोई निशाँ न दिखे ज़ख्मों को यूँ सिया हमने

ज़िंदगी की किताब के कुछ पन्ने रखकर ख़ाली 

उनका इंतज़ार किया और कुछ न किया हमने

हमारे ही दिल की न थी बात हर दिल की थी 

बस बोलकर सारा इल्ज़ाम सर पर लिया हमने

दिल, चैन, सुकून, नींदें, देखिए इतना सब तो था 

इसपर भी उनका कहना था कुछ न दिया हमने

ये ज़िंदगी भी ज़िंदगी सी तब ही है ‘ कँवल’

जब इसे किसी के नाम हो कर दिया हमने

Saturday, April 30, 2016

रखूं दिल में सँजोकर

तेरी किस किस बात को, रखूं दिल में सँजोकर.. तेरी मुस्कुराहट, तेरी हर आहट, तेरी आँखें, तेरी बातें, हर वो अहसास, जो छू जाता है, दिल को, जब जब तू, करीब होती है, तेरे हाथों की, नर्माहट, तेरी सांसो की, गर्माहट, तेरी हर छूअन, जो उतरती है, सीधे दिल में, दिल तो करता है, रख लूँ , सब कुछ तुम्हारा, दिल में, और रखूं उसे, सबसे करीब...

खाली से लम्हें पड़े हैं यहीं पर




खाली से लम्हें पड़े हैं यहीं पर थोड़े से छत पर, थोड़े ज़मीं पर अलसायी सी धूप उतरी है आँगन, अनमनी सी छाया छिप गयी कहीं पर परिंदें चोंच में तिनके लिए जा रहे हैं ज़रूर घरोंदे बना रहे हैं कहीं पर सुस्त सी दोपहर ने दे दी है दस्तक, रुक गयी है पुरवईया ठिठककर कहीं पर नयी कोपलो से फिर सज़ा गया है पीपल पर वो नटखट बचपन रह गया कहीं पर..

कुछ तो है, जो बाकी है

कुछ तो है, जो बाकी है, तेरे मेरे बीच, अब भी... जुदा होके भी, कहाँ हुए जुदा, कितनी ही यादें, कितनी ही बातें, कितने ही अहसास, अब भी हैं करीब, दिल के, रूह के... कितने ही लम्हे, लौट आते हैं, जब जब, गुज़रता हूँ, उन राहों से, जिनसे गुज़रे थे, हम दोनो कभी, साथ साथ.... कितने ही, किताब के पन्ने, महकते हैं, फिर से, जिनमें उभरा था, अक्स तुम्हारा कभी, उन्हें पढ़ते पढ़ते... साथ चलती हो, डाले मेरे हाथों में हाथ, हर एक लफ्ज़ के, जो भी लिखा, मैंने कभी, तुम्हारे लिए... बोलो, कहाँ जुदा हुए, और, होंगे भी नहीं कभी...

Saturday, May 3, 2014

अब तलक मौजूद है...

इस दिल में वो कहानी,
अब तलक मौजूद है...
सुनसान राहें, रुत सुहानी,
अब तलक मौजूद है...

साल दर साल कितने ही मौसम,
यूँ तो आते जाते रहे,
पेड़ पे लिखी इबारत पुरानी,
अब तलक मौजूद है...

कितनी ही बातों पे वक़्त की,
धूल यूँ तो जम गयी,
मेरी तस्वीर में तेरी इक निशानी,
अब तलक मौजूद है...

तेरे सारे खतों को यूँ तो,
बहुत पहले जला दिया,
दिल में उनकी महक दीवानी,
अब तलक मौजूद है...

कब बिछड़े थे आख़िरी बार,
कुछ ठीक से याद नहीं,
हाँ तब जो आया आँख में पानी,
अब तलक मौजूद है...

Sunday, April 20, 2014

दिल को समझाया बहुत.....

दिल को समझाया बहुत, ना करे तुम्हारा इंतज़ार,
पर ये कहता था, मुझे बस एक यही काम आता है !!

लाख कोशिश की, कि भुला दूं नाम तुम्हारा,
पर क्या करूँ जो लबों पर, तुम्हारा ही नाम आता है !!

अजीब कश्मो-कश है, मेरे और दिल के बीच,
जब देखो ये मुझे छोड़, तुम्हारे साथ हो जाता है !!

दिल जीता है तुम्हें, धड़कनों से भी आगे जाकर,
ये धड़कना भूल जाता है, पर तुम्हें ज़रूर गुनगुनाता है !!

कोशिश की है कई बार, तुमसे दूर  कर लूँ खुद को,
हर बार मैं हार जाता हूँ, और दिल जीत जाता है !!

Saturday, April 19, 2014

जिए जाते हैं, एक तमन्ना में

जिए जाते हैं, एक तमन्ना में,
हैं कितनी ही तमन्नायें, इसी तमन्ना में !!

रखें हैं कई अरमान, सँजोकर दिल में,
शायद कभी पूरे हो जायें, इसी तमन्ना में !!

आँसू आए हर बार, जहाँ हम बिछड़े थे,
शायद वो पूछने आयें, इसी तमन्ना में !!

नफ़रत भी की, दिल ही दिल उन्हें बहुत,
शायद दिल से निकल जायें, इसी तमन्ना में !!

इबादत ना की कभी, किसी बुत की उनके सिवा,
वो बस मेरे खुदा बन जायें, इसी तमन्ना में !!

Monday, April 14, 2014

सोचता हूँ कुछ लिखूं यारों

सोचता हूँ कुछ लिखूं यारों,
पर कलम आगे बढ़ती नहीं !!

ना जाने क्यूँ कोई भी बात,
अब दिल में गहरी उतरती नहीं !!

रिश्ते खोखले लगते हैं अब,
जुदाई पर भी आँखें भरती नहीं !!

गुलाब, गुलाब अब कहाँ रहे,
गुलाब बिखरते हैं, खुश्बू बिखरती नहीं !!

चाहने को तो कौन नहीं चाहता,
पर चाहने से ही तो जिंदगी संवरती नहीं !!

आती है तो बर्बाद करती ही है,
गमों की आँधी यूँ ही गुजरती नहीं !!

हम इंसान हैं या बन गये हैं मशीन कोई,
गम गम सा, खुशी खुशी सी लगती नहीं !!

Tuesday, February 18, 2014

जीवन के आगामी पथ पर

 ज्वाला सी, रक्त-रंजित,
कल की स्मरतियाँ,
कितनी ही बार,
समा लेना चाहती हैं,
अपने में,
मेरे आज को...
दशकों से दबी,
अंतर्मन की एक पीड़ा,
बार-बार उभरती,
कुचलकर,
मेरे मनरूपी आँगन को,
आकर खड़ी होती,
अचानक,
करना चाहती है जैसे,
एक क्षण में,
सर्वस्व समाप्त...
और कहती,
कि चल उठ तू,
फिर से दिखा,
तुझमें है जीवट,
है तू,
मुझसे विशाल,
हरा कर,
फिर से,
अपने मान के आँगन को
मैं घबराकर,
सिहर उठता हूँ,
काँप जाता,
मेरा रोम, रोम,
फिर जुटाता हूँ,
हिम्मत,
खड़ा होता हूँ,
एक अडिग चट्टान सा,
और कहता उससे,
उसकी आँखों में आँखें डाल,
रोकना संभव नहीं,
मैं इसी भाँति,
बढ़ूंगा,
ना रुकुंगा,
जीवन के,
आगामी पथ पर,
निरंतर.....

Sunday, February 9, 2014

ये बारिश का मौसम

यारों, ये बारिश का मौसम, ये रिम झिम, झिम झिम,
याद दिला रहा है, वो अपने पुराने, मस्ती भरे दिन...
वो अजीबोग़रीब शर्ते,
वो ठहाके, वो एक दूसरे को छेड़ना,
बात बात पर लड़ना, झगड़ना,
फिर मान जाना, मना लेना,
साथ में भूखे रहना,
खाना, पीना, हर पल को जीना,
सुबह से शाम तक,
साथ करना मेहनत, बहाना पसीना,

फिर भी लगना कि, जल्दी बीत गया आज दिन,
यारों, ये बारिश का मौसम, ये रिम झिम झिम झिम,
याद दिला रहा है, वो अपने पुराने, मस्ती भरे दिन...

वो अपने बारिश के दिन,
फिर से लौटाए कोई,
हम से सब कुछ ले ले,
पर हमें साथ ले आए कोई,
जिंदगी गुज़रे उन्हीं,
शर्तो, झगड़ों, मस्ती, ठहाकों में,
और हमें फिर कभी,
जुदा ना कर पाए कोई,

यारों, जिंदगी, जिंदगी नहीं लगती तुम बिन,
यारों, ये बारिश का मौसम, ये रिम झिम झिम झिम,
याद दिला रहा है, वो अपने पुराने मस्ती भरे दिन...

Sunday, February 2, 2014

है कितना तुम्हें याद किया मैंने....

है कितना तुम्हें याद किया मैंने,
ये राहें, ये पेड़, ये फूल, ये फ़िज़ायें,
सब हैं गवाह इसके,
इनसे पूछना कभी कि,
इन्होंने कितनी ही बार देखा है,
मेरे ख्यालों में तुम्हें,
मेरा हाथ थामकर,
रखकर मेरे काँधे पर अपना सिर,
इनके सामने से गुज़रते हुए.....

पूछना इस झील के,
थमे नीले पानी से,
कितनी बार अक्श उभरा,
तुम्हारा इसमें,
और मैंने देखीं हैं इसमें,
तुम्हारी झील सी गहरी आँखें,
मेरे प्यार के काजल से,
सजते, सँवरते हुए....

इस गुलाब की पखुड़ियों पर,
अरसे से ठहरा,
एक हवा का झोका,
बताएगा तुम्हें कि,
कितनी बार रुकी हैं,
मेरी साँसें, मेरी धड़कन,
जब जब छुआ है,
मैंने इन पंखुड़ियों को,
धीरे से,
तुम्हारे गुलाबी लब समझकर,
सकुचाते हुए, डरते हुए....

है कितना तुम्हें याद किया मैंने....


Wednesday, January 8, 2014

अलविदा

जब   से    कुछ     दोस्त     अलविदा    कह      गये,
हम  सबके    बीच   होकर   भी    तन्हा   रह    गये !!

चले जाने  में  ज़रूर   उनकी  कुछ  मजबूरी    होगी,
पर  वो  ये भी तो  देखते  कि  हम  कहाँ   रह   गये !!

वो  आए   थे तो  जिंदगी  में  लेकर  आए  थे   बहार,
वो   क्या  गये  फूलों  के   भी   जैसे  रंग  बह   गये !!

अब  एक  मामूली  सा  झोका  भी  झकझोर  जाता  है,
वो साथ थे तो हम गमों का सैलाब भी हंसकर सह गये !!

वो  फिर  से  आ  जायें   दिल   यही  दुआ  माँगता   है,
पर  क्या  होगा  जो  वे  फिर   से  अलविदा  कह  गये !!

Monday, September 16, 2013

तुम्हारी यादें..


यूँ  तो मायूसी  और उदासी हमारी  हर  वक़्त की  हमसफ़र है...
बस तुम्हारी यादें हैं, जो कभी कभी चेहरे पे मुस्कान ले आती हैं !!

बस हार ही हार मिली, मैं जब देखता हूँ बीते लम्हों  के  पन्ने,
बस तुम्हारे साथ की जागीर थी, जो गम में सुकून दे जाती है !!

उन ख़ास लम्हों को फिर से जीने का दिल तो बहुत करता है,
पर तुमसे ये हज़ारों मील की दूरी, फिर बीच में आ जाती है !!

तुम्हारे  नाम  का  दर्द  हम दिल से जुदा ना होने  देंगे कभी,
तुम तो गैर हो, पर ये मेरी जागीर है, मेरे हिस्से में आती है !!

मैं  तो  भूल  गया  हूँ  तुम्हें  बिल्कुल,  सच  कहता  हूँ..

बस धड़कन और साँसें तुम्हारा नाम लेकर  आती-जाती हैं !!

Sunday, July 28, 2013

तुम्हारे प्यार की फुहार से..

तुम्हारे प्यार की फुहार से,
मौसम सुहाना लगने लगा !
दिल झूम रहा है ऐसे,
ये मुझको दीवाना लगने लगा !!

बारिश कुछ और ज़्यादा,
ठंडक पहुचाने लगी,
टिप टिप गिरती बूंदे,
कोई मधुर गीत गाने लगी,

ठंडी हवा तन बदन में,
सिरहन सी पैदा करने लगी,
और उस पर तुम्हारी छुअन,
मौसम में रंग गुलाबी भरने लगी

तुम्हारी बाहों में आकर,
दिल बादल सा उड़ रहा,
दोनों की साँसों का एक दूसरे से,
एक अंजाना बंधन जुड़ रहा,

काश ऐसा हो, ये पल,
बस यहीं ठहरा रहे
तुम्हारा, मेरा और बारिश का बंधन,
होता बस गहरा रहे,
होता बस गहरा रहे,




Friday, July 26, 2013

वो हमारे दिल में बसते हैं

वो हमारे दिल में बसते हैं,
बस इतना ही है कि,
हम दिल की बात दिल में रखते हैं !!

आज भी कुछ अनछुए अहसास,
उनकी सुहानी यादों के,
उनकी मीठी बातों के,
उनके अनकहे वादों के,
दिल की सूखी ज़मीन पर,
मेघा बनकर बरसते हैं..
वो हमारे दिल में बसते हैं...

कितने ही पन्ने इस दिल की किताब के,
उनकी यादों की खुश्बू से,
उनकी आँखों के जादू से,
उनके मिलने की जूस्तजू से,
भीनी खुश्बू वाले फूलों जैसे,
सुबह शाम महकते हैं...
वो हमारे दिल में बसते हैं...
बस इतना ही है कि,
हम दिल की बात दिल में रखते हैं !!

Saturday, June 30, 2012

आँखों के साथ रोता है दिल भी...




आँखों     के     साथ     रोता      है      दिल       भी,
किसी की याद में एक अश्क बहाकर देखना  कभी..


गिर   जाओगे   तुम   खुद   अपनी    नज़रों     से,
तन्हाई में खुद से नज़रें  मि ला कर   देखना    कभी...


मिल  जाएगा  मुझ  पर   सितमों   का      हिसाब,
बीते   वक़्त   की  किताब  उठाकर   देखना   कभी...

चल     जाएगा    पता    वफ़ा    चीज़     क्या     है,
होठों पर अपने नाम मेरा गुनगुनाकर देखना कभी...


साँसें      तुम्हारी       भी          रुकने          लगेंगी,
अरमानों    को    दिल   में  दबाकर   देखना  कभी...


खुशी   और   गम   में    होता   है     फ़र्क    कितना,
गमों    को   घर    अपने   बुलाकर   देखना   कभी...


तुम्हारे   बिना     जीना      होता      है      मुश्किल,
तुम    खुद    को  ' दर्द'    बनाकर    देखना    कभी...

Friday, May 4, 2012

जाते...जाते...

एक और मुलाक़ात के लिए,
बेताबी को कई गुना बढ़ा गये,
इस अंदाज में कह गये वो अलविदा,
जाते...जाते...

जब साथ बैठे थे,
तो जैसे कोई बात नहीं थी,
पूरी तरह जैसे दिल में गये समा,
जाते...जाते...

एक आग थी जैसे,
कहीं दबकर सुलग रही थी,
वो उस आग में उठाके गये धुआँ,
जाते...जाते...

जिंदगी जैसे एक बंद कमरा थी,
घुट रही थी,
वे बना गये इसे खुला आसमां,
जाते...जाते...

अंजान था जैसे अब तक,
सचमुच जिंदगी से,
वे समझा गये इसका फलसफा,
जाते...जाते...

Tuesday, February 7, 2012

भूल जाना तुझे कोई मुश्किल तो नहीं है....

भूल    जाना      तुझे   कोई   मुश्किल   तो     नहीं    है
एक तू ही  दुनिया   में  आख़िरी  मंज़िल  तो     नहीं  है

पहुँच जाएगी मेरी जिंदगी की किश्ती भी कहीं ना कहीं
बस   तू   ही  मेरी   किश्ती   का  साहिल   तो   नहीं   है

मुस्कुराने    के  लिए  बहुत   सी  वजहें  हैं   दुनिया  में
एक   तू   ही   खुशियों   की   महफ़िल    तो    नहीं    है

मिल     जाएँगे    कद्रदान    मेरी    वफ़ा    के      बहुत
सारा    जमाना    तेरी    तरह   संगदिल   तो  नहीं   है

जब     तू     जी     सकती    है    मेरे      बिना       भी
मैं  ना   जी  सकूँ  तेरे   बिन  नामुमकिन  तो  नहीं  है

Friday, December 30, 2011

जाने कहाँ गये वो दिन...

जाने    कहाँ     गये     वो      दिन...

जब    घंटों    तालाब    के    किनारे,
बैठकर    मछलियाँ     निहारते   थे...
जब     स्कूल   से    आते      वक़्त,
सूखे कुँए में अपना नाम  पुकारते थे...
जब                बेपरवाह            हो,
भरी    दुपहरी    में पतंग  उड़ाते थे..
जब     गुल्ली    डंडे    के  खेल   में,
अपने  ही  दोस्त  को   पिदाते    थे...
जब     टॉफियाँ      और      ईमली,
खाने    से     अच्छी    लगती   थीं..
जब       हम      गुलेल   चलाते     थे,
और    दादी     पीछे    भगती    थी...
जब    मदारी     का     खेल     देखने,
दूर     तक        चले     जाते     थे...
जब       ट्यूब वेल   की    होद     में,
खूब      देर       तक      नहाते   थे..
जब    आँखों   में    पंछी  की  तरह,
उड़ने      के     सपने      होते     थे...
जब हम फिल्मों में किसी बच्चे  को,
रोता     देख     चुप     चुप   रोते   थे...

जाने       कहाँ       गये    वो   दिन...

जब      कोई   मनचाही   चीज़  खरीदने  के     लिए,
महीनों    गुल्लक    में     पैसे    जमा    करते  थे..
जब    मुहल्ले    में होने   वाली    राम लीला    में,
कभी राम, कभी लक्ष्मण, कभी वानर बना करते थे..
जब     बेर     और     जामुन     खाने    के     लिए,
दिन भर     के     लिए    घर    से  निकल  जाते थे...
जब     दिन     दिन    भर  कभी   कंचे, कभी ताश,
कभी    पहिया   चलाते   थे,   कभी  पंखे   उड़ाते थे..
जब    अपने     ही    घर    में    मलाई    चुराते   थे,
और      दादी     से     खूब    डाँट      मिलती    थी...
जब      गेंहूँ   की    लहराती    बालियों  में खेलते थे,
और    बालों    में     पीली      सरसों     झड़ती   थी...
जब           चित्रहार           और       रामायण     का,
कई               दिनों        तक     इंतजार  करते  थे...
जब      वीसीआर    पर    फिल्में     देखने  के  लिए,
मन                      बल्लियों             उछलते         थे...
जब             खेतों        पर       काम     करते      थे,
और        कोयल      आम     के    पेड़    पर गाती थी...
जब        खेत    पर   जाते   ही    भूख    लगती    थी,
और         रोटी       चटनी          खूब     भाती        थी....

जाने           कहाँ          गये            वो            दिन...

Friday, November 11, 2011

तेरे बिन कितना अधूरा हूँ मैं....

तेरे बिन कितना अधूरा  हूँ   मैं,
आज      है      जाना        मैंने..

के जैसे बाती   दिए   से     कोई
कोई   मोती   सीप   से     जैसे....
पानी   बिन    ज्यों       मछली,
तेरे   बिन   तड़पता    हूँ    ऐसे...

तेरे बिन जीना नहीं है  मुमकिन
आज       है        माना      मैंने....

तेरे बिन कितना अधूरा  हूँ    मैं,
आज     है      जाना           मैंने..

के     जैसे     दिल   से  धड़कन,
धरती     से       मौसम      जैसे...
जैसे         फूल       से    खुश्बू,
छवि      से        दर्पण     जैसे...

दुनिया नहीं है तेरी चाहत  बिन,
आज    है      पहचाना     मैंने...
तेरे   बिन  कितना अधूरा हूँ  मैं,
आज       है       जाना        मैंने..

Sunday, November 6, 2011

और प्यार रब है...

बूँदों   का  सागर   मे     मिल   जाना,
कलियों का सुबह  को  खिल   जाना,
हवा से   पत्तियों    का  हिल   जाना,
नज़र से मिलने पर नज़र दिल जाना,

ये   क्यूँ    होता    है ?
इसका क्या सबब है ?

बूँदें होती है सागर से मिलने को प्यासी,
इसलिए    वे  सागर  में मिल जाती हैं !
कलियों को  होती  है  भवरों  से  चाहत,
इसलिए   वे   सुबह  को  खिल जाती हैं !
हवा   छू   देती  है पत्तियों को प्यार से,
इसलिए   वे    झूमकर   हिल  जाती हैं !
प्यार   होना    होता   है  जब भी  कभी,
एक   दूसरे   से  नज़रें  मिल  जाती हैं !

यूँ  ही होता  है  प्यार,
और    प्यार   रब  है !


Monday, October 24, 2011

शुभ दीपावली

आप सबको खुशियाँ मिलें
है  मेरी  तमन्ना  दिली
मुबारक           आपको
ये     शुभ     दीपावली

फुलझड़ी     की     तरह
 आप खिलखिलाते  रहें
होठों  पर   नगमें  सदा
आप   गुनगुनाते  रहें

दुख     कभी   भी कोई
 ना आपके जीवन में आए
मिलें    हर  तरफ   बस
 आपको  बहारों के   साए

जीवन आपका महके
 जैसे गुलाब की कली
मुबारक           आपको
 ये   शुभ    दीपावली

हर    वक़्त   आपके
किस्मत   साथ  रहे
रहें   आप   जहाँ भी
आपकी मंज़िल पास रहे

जीवन में कोई गम
 ना  आपको   रुलाए
खुश   रहे   आपसे
सब अपने और पराए

मुस्कुरातें  रहें  आप
हर   राह,   हर गली
मुबारक           आपको
 ये    शुभ   दीपावली

Thursday, October 20, 2011

मुस्कुराने की वजह..

क्यूँ मुस्कुराने की वजह,
ढूंढता है दिल?
तेरे पास रोने की वजह नहीं है,
क्या यह काफ़ी नहीं..
जिस बात पर हँसना हो खिलखिलाकर,
तू मुस्कुराने से डरता है,
फिर कहता है,
जाती क्यूँ यह उदासी नहीं...
तेरे पास रोने की वजह नहीं है,
क्या यह काफ़ी नहीं..

Thursday, October 13, 2011

मुबारक जन्मदिन !!

बीते         खुशियों       में,
                                    तुम्हारा हर पल, हर दिन !
इन्हीं शुभकामनाओ सहित,
                                    तुम्हें मुबारक  जन्मदिन !!

जीवन    तुम्हारा,
                        गुलाबों सा  महके..
कदम       तुम्हारे,
                        कभी भी ना बहकें..

हर तमन्ना हर ख्वाहिश,
                                पूरी      हो          तुम्हारी..
बिना इंतजार किए तुम्हें,
                                 मिल जायें मंज़िलें  सारी..

तुम्हारे        लिए          हो,
                                   हर      काम      मुमकिन !
इन्हीं शुभकामनाओ सहित,
                                    तुम्हें मुबारक  जन्मदिन !!

(मेरे प्रिय दोस्त रवि के जन्मदिन के अवसर पर)

Thursday, September 29, 2011

भ्रष्टाचार...


एक बड़ा शोर है,
बादल घनघोर है,
इसने मचाया देखो,
आज हाहाकार है !!

देश रूपी पेड़ की,
जड़ो को जो खा रहा,
ये तो एक दीमक,
बड़ा ख़ूँख़ार है !!

ये एक राक्षस,
एक दानव जैसा,
देश को खाने के लिए,
बैठा तैयार है !!

गिरा दिया जिसने,
दुनिया की नज़रों से,
किया जिसने
हम सबको शर्मसार है !!

जानता हूँ मैं भी इसे,
जानते हैं आप भी,
ये और कोई नहीं है,
ये भ्रष्टाचार है !!


इसने है कपड़ा छीना,
इसने है छत छीनी,
इसने ग़रीबों का,
छीना नीवाला है !!

इसने बदले मेहनत के,
है मंहगाई दी,
जिसने ग़रीबो की,
कमर को तोड़ डाला है !!

अब ईद ईद सी ना,
दीवाली दीवाली लगे,
इसने तो निकाला,
सबका दीवाला है !!

इसने स्विस बैंक भरे,
अपने खाली बैंक करे,
और सारा दोष,
आम जनता पे डाला है !!

दो नहीं, सौ नहीं,
लाख या हज़ार नहीं,
इसने अरबों, करोड़ो का,
किया आर-पार है !!

जानता हूँ मैं भी इसे,
जानते हैं आप भी,
ये और कोई नहीं है,
ये भ्रष्टाचार है !!

 
जो साधते बस,
अपना ही मतलब,
ऐसे और नेता अब,
हमें नहीं चाहियें !!

हमे और हमारे देश को आज क्या चाहिए--

भरत सी ईमानदारी,
राम सा कल्याणकारी,
मोहम्मद साहब जैसा,
हितकारी हमें चाहिए !!

अशोक सा धर्माधिकारी,
अकबर सा भाईचारी,
वीरता का राणा सा,
पुजारी हमें चाहिए !!

खोखले वादे ना चाहें,
कोई झूठी आस नहीं,
अब एक ठोस,
शुरुआत हमें चाहिए!!

हमें लक्ष्मीबाई,
हमको भगतसिंह,
हमें गाँधी चाहिए,
सुभाष हमें चाहिए !!

आज फिर त्याग कर दे
जो अपने बेटे,
माँ के रूप में,
फिर पन्ना हमें चाहिए !!

देशहित में जो जान,
कर दे अपनी न्योछावर,
हर घर में एक,
अन्ना हमें चाहिए !!

घर घर में एक,
अन्ना हमें चाहिए !!

Monday, August 22, 2011

चेहरे पर भारत और भ्रष्टाचार

है "मेरा भारत महान" ये अभिमान,
उस दिन तक मुझ पर छाया था..
जब तक वो दुबला, कुम्हलाया चेहरा,
मेरे सामने ना आया था...

उसका आधा तन
निवस्त्र था,
एक फटा-पुराना चिथड़ा,
उसका सारा वस्त्र था...
उसके सारे शरीर में,
बहुत कम माँस शेष था..
वह हड्डियों का ढाँचा था,
खड़ा था, साँस ले रहा था,
बस यही उसमे विशेष था..
उसके पैर से,
रक्त की धार बह रही थी..
था जख्म बहुत पुराना,
उसकी हालत कह रही थी...
वह बार-बार रोटी माँगने के लिए,
हाथ फैलाता था...
कोई उसे गाली देता था,
तो कोई दुतकारता था...

उसकी दशा देख, मैंने उससे पूछा--

तू क्यूँ इस तरह,
निवस्त्र घूमता है...
क्या कुछ खाता नहीं है,
जो इस तरह सूखता है...
क्या तेरे माँ-बाप नहीं हैं,
जो माँगने के लिए हाथ फैलाता है..
यह जख्म नासूर बन जाएगा,
इस पर दवाई क्यूँ नहीं लगाता है...

इस पर वह बोला--

बाबू जी, मेरे पिता रोज कमाकर ही,
हमारे लिए रोटी लाते हैं..
पर जब वे बहुत बीमार पड़ते हैं,
उस दिन ही हम भीख माँगने आते हैं...
ऐसे कितने ही दिन आते हैं,
जब मैं भूखा सो जाता हूँ..
बाबू जी, दवाई खरीदने के लिए पैसे कहाँ,
मैं इस पर रोज मिट्टी लगाता हूँ...

वह बालक रोटी लेकर खाता रहा,
और मैं सोचता रहा---

हमारा सारा तंत्र,
कहाँ सो रहा है...
ग़रीबी मिटाने की हमारी योजनाओं का,
क्या हो रहा है..
ग़रीबी उन्मूलन के लिए,
जो अरबों की राशि आबंटित की जाती हैं..
जब इन ग़रीबों तक नहीं पहुँचती,
तो आख़िर कहाँ जाती हैं...

एक तरफ तो कितने ही भ्रष्ट,
नेता, राजा और कलमाडी हैं,
जो करोड़ों, अरबों रुपये खाते हैं..
दूसरी तरफ, कितने ही लोग,
रोज भूख से मरते हैं...
कितने ही बच्चे,
रोटी के लिए हाथ फैलाते हैं..

जिस दिन,
सोया तंत्र जागेगा, भ्रष्टाचार मिटेगा,
पारदर्शिता आएगी..
जिस दिन भूख, ग़रीबी और अभाव से,
किसी की जान नहीं जाएगी..
जिस दिन भीख माँगने के लिए,
कोई बालक हाथ नहीं फैलाएगा...
जिस दिन "जन लोक पाल" के लिए,
कोई अन्ना अनशन पर नहीं जाएगा...

उस दिन--
"मेरा भारत महान है" कहने की ज़रूरत ना होगी,
यह हर भारतवासी के चेहरे पर नज़र आएगा...

यह हर भारतवासी के चेहरे पर नज़र आएगा...

Thursday, August 4, 2011

भू-अधिग्रहण

वे मेरी जन्म-भूमि से,
मुझे जुदा करना चाहते हैं..

जिसके सौंधे, मटमैले आँचल में,
मैं पला बढ़ा;
जिसकी मिट्टी से मेरे जीवन का,
कलश गढ़ा;
जिसे मैने जल से कम,
पसीने से ज़्यादा सींचा;
जिसकी कोख से अन्न मिला मुझे,
सोने चाँदी अमरत सरीखा;
वे आज उसकी कीमत,
काग़ज़ के टुकड़ों में लगाते हैं...
वे मेरी जन्म-भूमि से,
मुझे जुदा करना चाहते हैं..



जिसकी गलियों में हम,
बचपन में खेले;
जिसमे मनाए मैने तीज़ त्योहार,
साथियों संग देखे मेले;
जिसकी यादों को सदा ह्रदय से लगाकर,
आने वाले कल के लिए बुने,
मैने सपने रुपहले;
वे उस गाँव और घर पर,
मंज़िलें खड़ी करना चाहते हैं....
वे मेरी जन्म-भूमि से,
मुझे जुदा करना चाहते हैं..

मैं जानना चाहता हूँ--

कितने नेता मुआवज़ा लेकर,
राजनीति छोड़ना चाहेंगे?
कितने अभिनेता फिल्में छोड़,
चिकित्सा में किस्मत आजमायेंगे?
कितने उद्योगपति उद्योग छोड़,
गाँवों में बस सकते हैं?
कितने क्रिकेटर क्रिकेट छोड़,
फुटबॉल में नाम कमा पाएँगे?

और वे मुझे
एक अंजान राह और मज़िल पर,
ज़बरदस्ती विदा करना चाहते हैं...
वे मेरी जन्म-भूमि से,
मुझे जुदा करना चाहते हैं...