है "मेरा भारत महान" ये अभिमान,
उस दिन तक मुझ पर छाया था..
जब तक वो दुबला, कुम्हलाया चेहरा,
मेरे सामने ना आया था...
उसका आधा तन
निवस्त्र था,
एक फटा-पुराना चिथड़ा,
उसका सारा वस्त्र था...
उसके सारे शरीर में,
बहुत कम माँस शेष था..
वह हड्डियों का ढाँचा था,
खड़ा था, साँस ले रहा था,
बस यही उसमे विशेष था..
उसके पैर से,
रक्त की धार बह रही थी..
था जख्म बहुत पुराना,
उसकी हालत कह रही थी...
वह बार-बार रोटी माँगने के लिए,
हाथ फैलाता था...
कोई उसे गाली देता था,
तो कोई दुतकारता था...
उसकी दशा देख, मैंने उससे पूछा--
तू क्यूँ इस तरह,
निवस्त्र घूमता है...
क्या कुछ खाता नहीं है,
जो इस तरह सूखता है...
क्या तेरे माँ-बाप नहीं हैं,
जो माँगने के लिए हाथ फैलाता है..
यह जख्म नासूर बन जाएगा,
इस पर दवाई क्यूँ नहीं लगाता है...
इस पर वह बोला--
बाबू जी, मेरे पिता रोज कमाकर ही,
हमारे लिए रोटी लाते हैं..
पर जब वे बहुत बीमार पड़ते हैं,
उस दिन ही हम भीख माँगने आते हैं...
ऐसे कितने ही दिन आते हैं,
जब मैं भूखा सो जाता हूँ..
बाबू जी, दवाई खरीदने के लिए पैसे कहाँ,
मैं इस पर रोज मिट्टी लगाता हूँ...
वह बालक रोटी लेकर खाता रहा,
और मैं सोचता रहा---
हमारा सारा तंत्र,
कहाँ सो रहा है...
ग़रीबी मिटाने की हमारी योजनाओं का,
क्या हो रहा है..
ग़रीबी उन्मूलन के लिए,
जो अरबों की राशि आबंटित की जाती हैं..
जब इन ग़रीबों तक नहीं पहुँचती,
तो आख़िर कहाँ जाती हैं...
एक तरफ तो कितने ही भ्रष्ट,
नेता, राजा और कलमाडी हैं,
जो करोड़ों, अरबों रुपये खाते हैं..
दूसरी तरफ, कितने ही लोग,
रोज भूख से मरते हैं...
कितने ही बच्चे,
रोटी के लिए हाथ फैलाते हैं..
जिस दिन,
सोया तंत्र जागेगा, भ्रष्टाचार मिटेगा,
पारदर्शिता आएगी..
जिस दिन भूख, ग़रीबी और अभाव से,
किसी की जान नहीं जाएगी..
जिस दिन भीख माँगने के लिए,
कोई बालक हाथ नहीं फैलाएगा...
जिस दिन "जन लोक पाल" के लिए,
कोई अन्ना अनशन पर नहीं जाएगा...
उस दिन--
"मेरा भारत महान है" कहने की ज़रूरत ना होगी,
यह हर भारतवासी के चेहरे पर नज़र आएगा...
यह हर भारतवासी के चेहरे पर नज़र आएगा...